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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

मित्र साहित्य

जीवन विविध परिघटनाओं का दूसरा नाम है और इनका साहित्य के द्वारा प्रतिबिम्बन स्वाभाविक है। इस संदर्भ में साहित्यकार से मेरी अपेक्षा है कि वह स्थिति या भाषा की अतिरंजना के द्वारा पाठक पर हावी होने का प्रयास नहीं करे। वह व्यक्ति को चकित, आक्रांत, उत्तेजित, या सम्मोहित करने का प्रयास कम से कम करे तथा मित्रवत पाठक को सहज अपनी मानवता के प्रति आश्वस्त करे। व्यक्ति और साहित्य दोनों की गरिमा है और यह उनके सहचर होने में ही सुरक्षित है।

नीरज कुमार झा

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