मैंने अनुभवों से सीखा है.
दुर्जनों का साथ,
उनसे सहयोग,
उनका समर्थन,
भले ही लाभदायक हो,
लेकिन क्लेश ही देता है.
सज्जन का साथ,
उनकी सहायता,
भले ही घाटे का सौदा हो,
लेकिन सुखद होता है.
संगति स्वार्थ की
त्रास ही देती है.
मुश्किल है हालांकि दुष्टों से बचना.
हर तरफ़ हैं वे ही हावी.
फ़िर भी बचता हूँ उनसे
जितना हो सके.
- नीरज कुमार झा
सर, आदमी को जिंदगी का असल पाठ तो अनुभव ही सिखाते हैं। अच्छी कविता है। दुर्जनों का साथ ले डूबता है।
जवाब देंहटाएं