मेरी ज़ेहन की तरकश में
तराशे जुमलों के तीर भरे हैं
ज़बाँ की कमान से
बेधने लक्ष्य का कोई मौक़ा
करता नहीं जाया
होता हूँ खुश पा निशाने पर
झूठ, छल, छद्म के आवरण से हीन सहजता
परहेज़ है मुझे बख्तरबंद लड़ाकों से
परहेज़ है मुझे बख्तरबंद लड़ाकों से
बनावटी चरित्र के लौह कवचों पर बेकाम जाते हैं तीर
ऊपर से ज़ोखिम जवाबी हमले का
ऊपर से ज़ोखिम जवाबी हमले का
निश्शंक साधता तीर
साधुता के खुले तन पर
साधुता के खुले तन पर
धंसते तीर के ध्वनि की तीक्ष्णता
तीर के धंसने की गहराई
पतली रक्तधारा की सघनता
करती हैं मुझे तुष्ट
बींधे लक्ष्य की असह्य वेदना
निर्दोष मन की मर्मान्तक छटपटाहट
करती नहीं मुझे विकल
आखेटक हूँ पक्का
पालन-प्रशिक्षण ही ऐसा मेरा
होने के लिए ऐसा ही
किया गया है तैयार मुझे
- नीरज कुमार झा
अच्छी पंक्तिया है .... .
जवाब देंहटाएंhttp://thodamuskurakardekho.blogspot.com/
बहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ........माफी चाहता हूँ..
बहुत बढ़िया रचना....बधाई...
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