अकारण ही मुझे मिला है बहुत सारा
मेरी प्रतिभा और प्रयासों से कहीं बहुत ज़्यादा
अपने-आप जो आया
डरता हूँ कहीं चला न जाए ऐसे ही
आँखें रखता हूँ नीची
चलता हूँ धीमा
बोलता बिलकुल कम
साँस भी लेता धीरे-धीरे
कहीं कुछ ऐसा ना हो जाए
कि खो जाए सब कुछ अकारण
जीता हूँ लेकिन
ताबूत में पड़े मुर्दे की तरह
- नीरज कुमार झा
अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएं