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बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

अंधेरा (कविता)

जगमगाहट ऐसी
कि नज़रें ठहरती नहीं
अंधेरा ऐसा कि
खो जाता अहसास
आँखों के होने का ही
कहीं कैद रोशनी अंधेरे में
कहीं झीनी रोशनी के पीछे ठोस अंधेरा
याद आती है ऐसे में
पसरी दूर-दूर तक
शांत शीतल चाँदनी

- नीरज कुमार झा


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