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गुरुवार, 4 जून 2015

उफनती दरिया में तैर रहे हो

उफनती दरिया में तैर रहे हो
छूटते किनारों की अनदेखी तो न करो
तूफानों में उड़ान भर रहे हो
नीचे की जमीन की याद तो रखो
झूठ से लड़ नहीं सकते
इसकी पैरोकारी तो न करो
सच की आँखों में झाँक  नहीं सकते
लेकिन इससे नफ़रत तो न करो

नीरज कुमार झा

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