परिपक्वता की आधार अर्हताएँ मैंने प्राप्त कर ली है;
बाल सफेद हो चुके हैं,
धूप में कम ही निकला हूँ,
तथाकथित परिपक्वतावर्द्धक अभ्यास भी किए हैं, और
अपने दिल में रह रहे बचपने को दैनिक रूप से डांटा है।
लेकिन, फिर भी, मेरे साथ उलटा हो रहा है;
समझदारी को लेकर मेरा आत्मविश्वास घटता  जा रहा है।
किसी आदमी को पहचानने का,
या परिस्थितियों के कारण और परिणाम जानने का,
दावा तो मैं पहले भी नहीं करता था,
लेकिन थोड़ा-बहुत भ्रम तो पाल ही लेता था।
अब मैं ऐसा कोई दावा नहीं कर पाता हूँ; 
मुझे अपने झक सफेद बालों में कुछ काला दिख रहा है। 
           नीरज कुमार झा  
 
 
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