कुछ विषय-वस्तु ऐसे होते हैं जिन पर निरंतर चर्चा आवश्यक होती है। राष्ट्र का निरंतर शक्ति-संवर्द्धन, संपत्ति-विस्तार, और सांस्कृतिक-उन्नयन ऐसे विषयों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्रहित और प्रत्येक नागरिक का हित अभिन्न है। प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा, संपन्नता, और सुख का आधार देश की शक्ति और सामर्थ्य है। इसलिए प्रत्येक को यह तथ्य आत्मसात करना होगा कि राष्ट्रहित उसका स्वयं का हित है। कोई भी प्रवृत्ति, घटना, या परिघटना यदि देश हित में नहीं है तो वह किसी भी नागरिक के हित में नहीं है।
भारत के लिए यह रणनीतिक अपरिहार्यता है कि यह विश्व की परमशक्ति बने। यद्यपि भारत का स्वभाव वसुधैव कुटुंबकम का है, लेकिन दुनिया के कई देश, पंथ, और विचारधाराएँ भारत, भारतीयता, और भारत दर्शन से शत्रुता का भाव रखते हैं, और इस सभ्यता का पराभव या इस पर वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। ये ताकतें अत्यंत ही क्रूर, आक्रामक, और वर्चस्ववादी हैं। इनमें से चीन एक महाशक्ति और यह वैश्विक प्रभुता की योजना पर कार्यरत है। दूसरा पाकिस्तान है, जो पूरी तरह से विफल एक राजनीतिक उपक्रम है और मानवताविरोधी तत्वों और गतिविधियों का अड्डा है।
भारत तीव्रता से अग्रसर है। इसमें भारत में समाज मीडिया द्वारा प्रशस्त मुक्त विमर्श भी योगदान दे रहा है। भारत की शक्ति स्वयंभू है, लेकिन यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह देश की शक्ति में योगदान दे। वास्तव में यह ऐसा कर्तव्य है जो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत हित के प्रयास से भिन्न नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपना कार्य परहित और समाजहित को ध्यान में रखते हुए निष्ठा और मनोयोग से करे, यह देश हित में महत्वपूर्ण है। हालांकि अनेक जन कई बार परिस्थितियों के कारण उचित मार्ग का चयन नहीं कर पाते हैं, लेकिन वे अपनी प्रवृत्ति सकारात्मक बनाए रखे और सन्मार्ग से मुह नहीं मोड़ लें, यह उनके और देश हित लिए आवश्यक है। यह अत्यंत ही सहज है; यह प्रयास मात्र दृष्टिकोण को लेकर है।
राष्ट्र के मान की रक्षा हर राष्ट्रवादी का परमधर्म है और सामान्यतः प्रत्येक भारतीय इसके लिए प्रतिबद्ध है। यहाँ यह विषय रेखांकित किया गया है कि एक सामान्य व्यक्ति सामान्य जीवन में कैसे देशहिट में योगदान दे सकता है।विशिष्ट अभियानों और महान कृत्यों के साथ इस तथ्य का अपना महत्व है।
सामूहिक रूप से हमारा उद्यम यह होना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक कौशल, क्षमता, और चरित्र में श्रेष्ठता प्राप्त करे। इसके लिए माध्यम शिक्षा व्यवस्था की श्रेष्ठता ही है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि समाज के सर्वाधिक प्रतिभावान और प्रतिबद्ध जन शिक्षक का कार्य करें। हमारा लक्ष्य इससे न्यून नहीं हो कि प्रत्येक भारतीय व्यक्तित्व और भूमिका में वैश्विक स्तर पर अगुआ हो और दुनिया के लोग भारत और किसी भी भारतीय की ओर मार्गदर्शन के लिए देखें और उनका अनुसरण कर गौरवान्वित हों। यह सहज संभव है। मात्र उपलब्ध संस्कार को संस्थागत आधार देना है।
नीरज कुमार झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें