स्कैन्डिनेव़िअन देशों में सामाजिकता अत्यंत न्यून है। वहाँ व्यक्ति हेतु सुरक्षा और सुविधाएँ बहुत ही अच्छी हैं। वहाँ लोगों को एक-दूसरे की जरूरत ही नहीं है जैसा कि सार्वजनिक अभिकरण उनकी हर जरूरत को बखूबी पूरा करते हैं। इन देशों में लोग सम्पन्न हैं और उनका जीवन निरापद है। लेकिन मेरा मानना है कि सामाजिकता का अभाव इस स्थिति में भी आदर्श नहीं है। व्यक्ति एकाकीपन में जीवन की सार्थकता प्राप्त करे, अस्वाभाविक प्रतीत होता है।
भारत के वर्तमान दौर में सामाजिकता को सघन, स्वस्थ और सुखद बनाने की आवश्यकता है। इसकी कमी के कारणों और इसमें विस्तार हेतु उपायों को लेकर व्यापक विमर्श होना चाहिए। मैं इस विषय (स्थिति, कारण, और समाधान) पर अपने विचारों को क्रमशः लिखता रहूँगा। मित्रों से आग्रह है कि इस विषय पर विचार करें और उन्हें साझा करें।
नीरज कुमार झा
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