मानव बीच नहीं भेद
सत्य की जीत का
इससे नहीं बड़ा
त्योहार कोई एक
भक्त प्रह्लाद
सनातन भक्ति
सुमिरे आज
कहे जीवन सच
उमंग सच
मोद सच
देह सच
माटी सच
झूमे पंचभूत
मनाए सृष्टि का उत्सव
उच्छृंखल आज
जल विशेष
मस्तिष्क की सत्ता
आज़ नहीं
संप्रभु हृदय आज
होली है आज
नीरज कुमार झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें