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सोमवार, 29 अप्रैल 2024

शिक्षा और समझदारी


शिक्षाभ्यास के प्रारंभ तथा समझदारी के आने में अंतराल होता है। शिक्षा ग्रहण शुरू करने के बाद एक अवधि के उपरांत एक क्षण आता है कि चीजें समझ में आनी शुरू होती है। यह एक तरह से यूरीका मोमेंट की तरह होता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि साइकिल चलाना सीखने के समय एक क्षण आता है जब  सीखने वाले को लगता है कि वह साइकिल चला सकता है। दुनियादारी की समझ लोग जीवन के अपरिहार्य अनुभवों से सीख लेते हैं लेकिन समाज और मानवता के व्यापक मुद्दों की समझ औपचारिक शिक्षा के माध्यम से ही आती है। यह पोस्ट इसी बात से जुड़ी है। कुछ लोग साइकिल चलाना भी नहीं सीख पाते लेकिन सामाजिक, देशीय और अन्तर्देशीय प्रवृत्तियों की समझ के उद्देश्य को पूर्ण करने वाली प्रवीणता लोग प्रायः प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसके अनेक कारण हैं । शिक्षाप्राणाली में गुणवत्ता का अभाव, अध्ययन करने की प्रवृत्ति का नहीं होना, तथा पाठ्यपुस्तकों का अभाव आदि हैं। इसका सबसे बड़ा कारण लेकिन भिन्न है। यह विचारधाराग्रस्तता है। 


नीरज कुमार झा 

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

होना

तुम्हारे होने से ज्यादा विस्मयकारी कुछ और नहीं है।
हर बात जो तुम्हें प्रभावित करती है, इस बात से छोटी है।
 
नीरज कुमार झा

तलाश

तलाशता आदमी दूसरों में खुद को है
समझता नहीं दूसरा कुछ और नहीं है

नीरज कुमार झा 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

Liberalism

Liberalism is a word so variously used and so often ruthlessly abused that it has turned amorphous as a conceptual category. Its essence,  a human being centres the phenomenal, is lost in the din of noble-sounding ideas that many people articulate and champion to further their vested interests.  Humanism was both an epistemological and political revolution. The idea can be dismissed theologically and even philosophically, but, the fact remains that the idea emerged at a historical juncture and caught the imagination of certain people. With this idea over time, human beings could claim their humanity. Those who lack civic morality and desire to lord over their fellow human beings often seek to extinguish the liberal spirit by invoking very liberalism.   

Niraj Kumar Jha 

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

Systemic Knowledge

Well-integrated knowledge systems must replace ideologies. People must not subject themselves to the fancies of out-of-the-world thinking mavericks. Collaborative philosophizing and research projects must go into piecemeal calibrating of the working systems. A functional system results in people living free of want, fear, and indignities. Any good system or improvisation begins showing results from day one.
 
Multiple and multifaceted claims of what constitutes good often mislead people. For that people must be aware of this, one's personal and public good are intertwined. Social good is the ecology which alone can ensure personal excellence and, on the other end, individual people's endeavour for excellence betters the ecology. By excellence, I do not mean extraordinariness. The pursuit of extraordinariness is pathological.
 
Niraj Kumar Jha

मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

होना

जो कहता है,
वह स्वयं के होने का अहसास करता है। 
जो सुनता है,
वह दूसरों के होने का ज्ञान रखता है। 

नीरज कुमार झा 

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

आदमी ही रह गया

वह आदमी, आदमी ही रह गया
पढ़-लिख लेता तो कुछ बन जाता
 
नीरज कुमार झा

आदतों की नैतिकता

जो सही लगे, जरूरी नहीं सही हो 
अपनी आदतों की भी नैतिकता है


नीरज कुमार झा 

A Present History of Education

A time came when imperial orders competing with each other made imperialism global. At one point, imperialism was the world, its flora and fauna, and everyone. It was a planetary hierarchical placing of people and grabbing of resources. The system globally coopted education and made it an instrument of order rather than letting it remain a passage to the humanization of human beings. A degree was meant to be a passport to a higher sphere.  It was a process of the denial of humanity to human beings. The story ends here. Is it history? 

Niraj Kumar Jha 

शनिवार, 13 अप्रैल 2024

बड़ी और छोटी बातें

बातें कुछ बड़ी
बातें छोटी बहुत सारी
दोनों के मुद्दे अलग
करने के तरीके अलग
दोनों में कुछ एक सा नहीं
बड़ी की अहमियत बहुत
छोटी की उतनी तो बिलकुल नहीं
मुझे एक दुःस्वप्न आता है
सभी लोग छोटी बातें कर रहे हैं
उन्हीं को अहमियत दे रहे हैं
संगोष्ठियों और सम्मेलनों में
टेलिविज़न और सोशल मीडिया पर
सभी छोटी-छोटी बातें कर रहे हैं
छोटे-छोटे अप्रासंगिक मुद्दे ही चर्चा में है
बड़े-बड़े प्रासंगिक मुद्दे गायब हो रहे हैं
मैं बहुत विचलित हो रहा हूँ
मेरी नींद खुल जाती है
राहत की साँस ले पाता हूँ

नीरज कुमार झा

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

बिना कथ्य की कथा

अभिव्यक्ति अहं की तुष्टि के लिए नहीं हो
प्रयास करें कि बिना कथ्य के कथा नहीं हो
किसी को चमत्कृत करने की नहीं
कोशिश बात ईमानदारी से कहने की हो
 
नीरज कुमार झा

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

मानवता के प्रति

स्थितप्रज्ञ है जो
मुझे लगता है
गुजरा होगा वह
गहन पीड़ा से कभी
स्थिरता का उसका मानस
सहा होगा भूचालों को
शीतलता निकाल लाया होगा
वह घोर तपन से
प्रकाश नहीं पाया होगा यूँही उसने
मथा होगा तमस को वर्षों उसने
सहज नहीं होगा
उनका ज्ञानी होना

नीरज कुमार झा

देख तू आकाश

अंधकार
अंतस का
सर चढ़ता
बन अहंकार
ढोता दंभी नित
स्वयं का बोझ
जहाँ पहुँचता
बन जाता
औरों का भार
कह सको तो
कहो उन्हें
देखो तुम धरती
देख तू आकाश
 
नीरज कुमार झा