शिक्षाभ्यास के प्रारंभ तथा समझदारी के आने में अंतराल होता है। शिक्षा ग्रहण शुरू करने के बाद एक अवधि के उपरांत एक क्षण आता है कि चीजें समझ में आनी शुरू होती है। यह एक तरह से यूरीका मोमेंट की तरह होता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि साइकिल चलाना सीखने के समय एक क्षण आता है जब सीखने वाले को लगता है कि वह साइकिल चला सकता है। दुनियादारी की समझ लोग जीवन के अपरिहार्य अनुभवों से सीख लेते हैं लेकिन समाज और मानवता के व्यापक मुद्दों की समझ औपचारिक शिक्षा के माध्यम से ही आती है। यह पोस्ट इसी बात से जुड़ी है। कुछ लोग साइकिल चलाना भी नहीं सीख पाते लेकिन सामाजिक, देशीय और अन्तर्देशीय प्रवृत्तियों की समझ के उद्देश्य को पूर्ण करने वाली प्रवीणता लोग प्रायः प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसके अनेक कारण हैं । शिक्षाप्राणाली में गुणवत्ता का अभाव, अध्ययन करने की प्रवृत्ति का नहीं होना, तथा पाठ्यपुस्तकों का अभाव आदि हैं। इसका सबसे बड़ा कारण लेकिन भिन्न है। यह विचारधाराग्रस्तता है।
नीरज कुमार झा