बातें कुछ बड़ी
बातें छोटी बहुत सारी
दोनों के मुद्दे अलग
करने के तरीके अलग
दोनों में कुछ एक सा नहीं
बड़ी की अहमियत बहुत
छोटी की उतनी तो बिलकुल नहीं
मुझे एक दुःस्वप्न आता है
सभी लोग छोटी बातें कर रहे हैं
उन्हीं को अहमियत दे रहे हैं
संगोष्ठियों और सम्मेलनों में
टेलिविज़न और सोशल मीडिया पर
सभी छोटी-छोटी बातें कर रहे हैं
छोटे-छोटे अप्रासंगिक मुद्दे ही चर्चा में है
बड़े-बड़े प्रासंगिक मुद्दे गायब हो रहे हैं
मैं बहुत विचलित हो रहा हूँ
मेरी नींद खुल जाती है
राहत की साँस ले पाता हूँ
नीरज कुमार झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें