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शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

उत्तर से अतिक्रमण

    भारत-चीन सीमा पर असामान्य सी भले ही कोई स्थिति नहीं हो क्योंकि चीन की घुसपैठ को आम बात मानी जा रही है, लेकिन यह तय है कि चीन भारत-चीन सीमा रेखा मैकमहन लाइन को नहीं मानता है, अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है, अकसाई चीन पर कब्जा किये बैठा है, भारत की चारो तरफ से घेराबंदी कर रहा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता की भारत की दावेदारी का विरोध करता है और भारत को औकात बताने का कोई मौका नहीं छोड़ता है. ... यहाँ मुद्दा यह नहीं है कि भारत की तात्कालिक रूप से चीन से कोई गंभीर खतरा है, बल्कि बड़ा प्रश्न यह है कि क्या भारत चीन की  बढ़ती ताक़त तथा उसकी वर्चस्ववादी नीतियों के प्रतिकार की क्षमता विकसित करने के लिए सजग है? क्या भारत चीन के द्वारा प्रस्तुत आर्थिक प्रतियोगिता का सामना करने के लिए तैयार है? यह सही है कि भारत चीन के बाद विश्व की सर्वाधिक बढ़ने वाली  अर्थव्यवस्था है लेकिन जब मुक़ाबला आमने-सामने का हो तो नंबर दो होना कोई मायने नहीं रखता है. ...
     सबल सुरक्षा व्यवस्था के लिये अर्थव्यवस्था की मजबूती आधारभूत है और मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिये ज़रूरी है स्वच्छ, समर्पित, सुलझी, सक्रिय तथा लक्ष्योंमुखी शासन प्रणाली. चूंकि जनतंत्र जनस्वामित्व पर आधारित शासन प्रणाली है, इसलिए शिक्षा का मह्त्व निर्णायक है. शिक्षा की गुणवत्ता मानव संसाधन के दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि नेतृत्व तथा प्रशासन की निष्ठा तथा क्षमता, सभ्य नागरिकता और संस्कृति के परिष्कार के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है.
नीरज कुमार झा, "उत्तर से अतिक्रमण," बी पी एन टुडे, ग्वालियर,  १/२, १६ अक्टूबर २००९, पृ. ४३/४२-४४.

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