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रविवार, 1 नवंबर 2009

तिलिस्म विज्ञापन का

विज्ञापन का तिलिस्म शिशुओं की मासूमियत को, स्त्रियों की गरिमा को, युवाओं की ऊर्जा को लीले जा रहा है. सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि जनतंत्र की तरह पूंजीवाद या उदारवाद का भी कोई विकल्प नहीं है. पूंजीवाद का इलाज राजकीय नियंत्रण भी नहीं है, जैसा कि सरकार के तथा उससे जुड़े लोग पैरोकारी करते हैं. वे प्राधिकारवाद के बेईमान पैरोकार हैं. इसका उपचार सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक है.

यह उपचार आवश्यकताओं को सीमित करना है. भारतीय परंपरा में उपवास, त्याग तथा दान की परंपरा है. भारतीय दर्शन किसी तरह की आसक्ति का भी निषेध करता है. ऐसा नहीं है कि भारतीय परम्परा में काम या अर्थ उपेक्षित है, लेकिन वे धर्म की मर्यादा से बंधे हैं. 

आधुनिक युग में जनतंत्र तथा पूंजीवाद को आध्यात्मिक स्वरूप देने का सिद्धांत गांधी जी ने न सिर्फ़ भली-भांति प्रतिपादित किया है बल्कि व्यवहार में लागू कर दिखाया है. पूंजीवाद आजकल कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की बातें कर रहा है. इस तरह की समझ को भारत की सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक परम्पराओं से जोड़ने की है. 

(नीरज कुमार झा, " तिलिस्म विज्ञापन का ," बी पी एन टुडे, ग्वालियर, १२/१, १६ सितम्बर २००९, पृ. १३/११-१३.)

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