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बुधवार, 3 नवंबर 2010

भारती का भविष्य (भाग २)

उदारवादी वैश्वीकरण के इस दौर में इस वैश्विक संस्कृति का निरंतर विस्तार हो रहा है. वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभावों को लेकर मतभेद हो सकता है लेकिन विभिन्न संस्कृतियों पर इसके विघटनात्मक तथा विलयनकारी  प्रभावों को नकारना असम्भव है. भारत की संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति के  प्रभावों के नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों ही पहलू हैं लेकिन जो चिंता का कारण है वह भारत की धूमिल हो रही सांस्कृतिक अस्मिता है. भारत का आभिजात्य वर्ग विदेशी संस्कृति को तेजी से अपना रहा है तथा उनके सांस्कृतिक  आदर्शों में पाश्चात्य सांस्कृतिक मूल्य शुमार हो रहे हैं. प्रवृत्ति भारतीयता में संशोधन या सुधार की नहीं है बल्कि पश्चिमी मूल्यों का अंधानुकरण है. भारत में  पुनर्जागरण काल में भी पश्चिमी मूल्यों से प्रेरणा ली गयी थी लेकिन भारतीय मूल्यों को नकार कर नहीं. यहाँ जो विषय विचारणीय है वह  संस्कृति से जुड़ा  सबसे बड़ा और पहला मुद्दा है. यह मुद्दा भाषा का है. भाषा किसी भी सभ्यता या समाज की संस्कृति की  वाहिका हो्ती है. आज इस वैश्वीकराण के दौर में विश्व की अन्य भाषाओं के साथ भारती का भी भविष्य शोचनीय है. इस एकीकृत विश्व की भाषा अँगरेजी है. यह अंतरराष्टीय वाणिज्य की भाषा है, विश्व पूँजी की भाषा है. यह विश्व को नियंत्रित करने वाली राजनीति की भाषा है. उदारवादी  वैश्वीकरण के इस दौर  में अँगरेज़ी भाषाई एवं सांस्कृतिक ब्रह्मांड  का अंधगह्वर (ब्लैक होल) बन चुका है जिसके विनाशक आकर्षण का प्रभाव विश्व की तमाम भाषाओं एवं संस्कृतियों पर स्पष्ट अनुभव किया जा सकता  है. इसका प्रमाण अँगरेजी का निरंतर विस्तार एवं तेजी से विलुप्त  हो्ती विश्व की कमज़ोर और  छोटी भाषाएँ हैं. दुनियाँ में आज जहाँ सौ करोड़  से ज़्यादा लोग द्वितीयक भाषा के रूप में अँगरेज़ी का उपयोग कर रहे हैं वहीं बड़ी संख्या में भाषाएँ निरंतर विलुप्त हो रही हैं. कालांतर में विश्व की अनेक महत्वपूर्ण भाषाएँ, और संस्कृतियाँ भी, बिना किसी निशान, धरोहर या उत्तराधिकार के अँगरेज़ी के इस अंधगह्वर में विलीन हो जायेंगी. भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी के भविष्य की ऐसी सम्भावना भी त्रासद है हालांकि भारती  जैसी बहुभाषी भाषा के लिये इस तरह का विलुप्तीकरण तो प्राय: सम्भव नहीं है लेकिन इसके पतन के लक्षण स्पष्ट हैं. वास्तव में भारती का वर्तमान भी कम चिंताजनक स्थिति में नहीं है. हिंग्लिश का आंग्ल भाषा का सर्वाधिक भाषी स्वरूप होने की दिशा में बढ़ना भारती का अँगरेज़ी में विलयन की प्रकिया का लक्षण हो सकता है. आज विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन के बाद सबसे ज़्यदा  अँगरेजी बोलने वाली आबादी भारत में रहती है.

- नीरज कुमार झा 
(मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित पत्रिका रचना के  मई- अगस्त २००६ अंक  में प्रकाशित मेरे आलेख का अंश

1 टिप्पणी:

  1. नीरज जी दरअसल हम लोगों की वर्तमान शिक्षा पद्धति हमें मानसिक गुलाम बना रही है। उसी का नतीजा है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर, परंपरा, सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि से विमुख हो रहे हैं।
    आपको और आपके परिवार को महापर्व दीपोत्सव की शुभकामनाएं।

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