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शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

भारती का भविष्य (भाग ३)

उदारवादी  वैश्वीकरण के अंतर्गत भारतीय संस्कृति के अस्मिता को लेकर खतरों को रेखांकित करने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि उदारवाद या वैश्वीकरण भारत या भारतीय संस्कृति के  लिये अहितकर हैं. वास्तव में  भारतीय संस्कृति के अवमूल्यन का कारण आज़ादी के बाद उदारवाद से विमुख होना था. स्वतंत्रता के पश्चात भारत में मेजतंत्रीय समाजवाद को अर्थनीति का आधार बनाया गया. आशा के विपरीत लेकिन इस व्यवस्था  के अनुरूप  इसके अंतर्गत विकास की गति अत्यंत शिथिल रही. इस काल में न सिर्फ भारतीयों की उद्यमिता  दमित रही बल्कि उनकी सर्जनात्मक  क्षमताओं का भी क्षरण हुआ. यह भारतीय इतिहास का सबसे विभ्रमकारी  युग था  जिसमें निहित  स्वार्थों के द्वारा अनधीनता  के नाम पर दासता, विकास के नाम पर विपन्नता और ज्ञान के नाम पर प्रचार परोसा गया. हालांकि इस व्यवस्था की कमजोरियों ने ही भारत  में उदारवाद  का मार्ग प्रशस्त किया लेकिन आज भी उदारवाद भारत के  मध्यवर्ग में एक घृणित शब्द है, खासकर भाषा तथा साहित्य के पुरोधाओं  के मध्य. उदारवाद अपनी असीमित क्षमता के आधार  पर भारतीयों के मध्य सम्बल बन उपस्थित है और इसके लाभ बेहतर  विकास दर और घटती गरीबी के रूप में स्पष्ट हैं. फ़िर भी उदारवाद  को कम ही सराहा जाता  है. इसमें निश्चित रूप  से निहित स्वार्थों की भूमिका है लेकिन ज़्यादा बड़ा कारण शिक्षा के नाम पर प्रचार के शिकार लोगों की मानसिकता  का है. आर्थिक विकास के द्वारा ही भाषा, तथा संस्कृति भी, सुरक्षित रखी  जा सकती  है. विपन्नता  की स्थिति में संस्कृति कभी भी फल-फूल नहीं सकती  है. उदारवाद तथा वैश्वीकरण भारत को अवसर प्रदान कर रहा है कि भारत अपनी काबिलियत विश्व में साबित करे. कई भारतीय उद्यमी ऐसा कर भी रहे हैं. आवश्यकता उन अवसरों के विस्तार की है जिससे जन-जन में छिपी उद्यमिता तथा सृजनात्मक क्षमताएँ  विकसित हो सके. जरूरत  है भारत को विश्व पूँजी व्यवस्था में अपनी उचित  स्थान बनाने की ताकि अन्य देशों के लोग भारती सीखकर गर्वान्वित हों और भारतीयों की सेवा में रत हों जैसाकि आज भारतीय अन्य लोगों के लिये कर रहे हैं.

नीरज कुमार झा
(मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित पत्रिका रचना के  मईअगस्त २००६ अंक  में प्रकाशित मेरे आलेख का अंश

1 टिप्पणी:

  1. चिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
    हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
    अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
    प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    सादर,
    मनोज कुमार

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