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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

भारती का भविष्य (भाग १०)

उन्नति का मार्ग

हिन्दी को सशक्त बनाने का उत्तरदायित्व हर हिन्दी भाषी का है. यह उसके लिये मात्र भावनात्मक प्रश्न नहीं है। इससे उसका आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक हित जुड़ा है. साथ ही यह भी समझने की आवश्यकता है कि अँगरेज़ी भाषा का वह कितना गहन अध्ययन  करे, कितना भी  इसका अभ्यास करे, चूँकि  यह एक विदेशी भाषा है और विदेशी संस्कृति की अभिव्यक्ति है, वह इस भाषा में उस स्तर का प्रावीण्य प्राप्त नहीं कर सकता है जो देशज भाषा में उसे सहज प्राप्त होता है. अँगरेज़ी भाषाइयों में उसकी पहचान तो एक शरणार्थी की ही रहेगी चाहे वह कुछ भी कर ले। यदि वह अँगरेज़ी में प्राकृतिक प्रवीणता हासिल कर भी लेता है तो वह ऐसा अपनी संस्कृति से बिलगाव की कीमत पर करता है। अतः प्रत्येक हिन्दी भाषी  स्वयं तथा हर तरह तथा हर स्तर के संगठन, जिसपर उसका प्रभाव है, में प्रयास करे कि हिन्दी के प्रभाव में वृद्धि हो। ऐसी स्थिति में ही सरकारी प्रयासों में भी गम्भीरता तथा ईमानदारी दिखने की सम्भावना है।
- नीरज कुमार झा 

(मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित पत्रिका रचना के मई- अगस्त २००६ अंक में प्रकाशित मेरे आलेख का अंश)

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