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शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

कल्पना का सच

अस्तित्व का अर्थ समझना
संभव नहीं,
यह तय है। 
अस्तित्व का कोई सत्य नहीं,
यह विचित्र सत्य है। 
अर्थहीनता के इस अनादि अनंत विस्तार में
विचरता हमारा विवेक भयाकुल है। 
भयाकुल मन रचता है
कल्पना का सच। 
लेकिन सच की कल्पना का संबल
जो है
जो हमारी जद में  है
कभी-कभी उसे ही उजाड़ देता है। 
यह नहीं होना चाहिए। 

- नीरज कुमार झा

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