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रविवार, 14 अगस्त 2011

जिसे नहीं गवारा मेरा गुलाम होना

गुलाम मैं भी हूँ 
गुलाम तुम भी हो
मजे में हो तुम
लेकिन मैं हूँ बेचैन 
जिसका तुम्हें भान भी नहीं
उसके मारे मैं हूँ परेशान 
ऐसा क्यों है
शायद तुम पड़े हो जन्म से ही 
ऐसी कालकोठरी  में 
जिसमें कोई रोशनदान भी नहीं
मैं जहाँ हूँ नज़रबंद 
वहाँ खुली खिड़कियाँ तो हैं ही सही 
रोशनी तो कभी न कभी तुमने भी देखी होगी
लेकिन तुमने झूठला दिया होगा देखे का
बहला लिया होगा अपने-आप को 
समझ कर उसे छलावा 
दिमाग पर जोर डालना 
शायद नहीं  तुम्हारी फितरत 
लेकिन मेरे मन का एक कोना है
जिसे नहीं गवारा 
मेरा गुलाम होना

- नीरज कुमार झा 

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