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शनिवार, 13 अगस्त 2011

जन-जन संप्रभु

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यह जनतंत्र है
यहाँ कोई राजा नहीं है 
कोई प्रजा भी नहीं
हम सभी नागरिक हैं
और तय है कि
हम चुनते हैं अपने प्रतिनिधि
स्वामी नहीं
उचित तो यह भी नहीं कि 
कहा जाए किसी को शासक या प्रशासक 
जीविका चलती उनकी 
हमारे अंशदान से 
मात्र  हैं  वे प्रबंधक 
हमारे सामूहिक हितों के 
यह जनतंत्र है
और हर जन संप्रभु है
बंदिशें हैं और रहें 
लेकिन सिर्फ इसलिए कि
हमारी अनधीनता नहीं बदले अराजकता में
बंदिशों का है लक्ष्य मात्र एक
कि हो हमारी स्वतंत्रता अधिकतम 
और प्रतिबंध रहे हम पर कम से कम
हर जन है बड़ा 
तंत्र के किसी भी अंग
या उसके किसी कर्मी से
याद रहे हमेशा कि
यह जनतंत्र है
और जन-जन संप्रभु है
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नीरज कुमार झा
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1 टिप्पणी:

  1. हर जन है बड़ा
    तंत्र के किसी भी अंग
    या उसके किसी कर्मी से
    याद रहे हमेशा कि
    यह जनतंत्र है
    यह सूत्र वाक्य सरस है , इसका अनुशीलन भी होना चाहिए , परन्तु ,जन तंत्र की जीवन्तता के लिए प्रतिनिधि /शासक अनिवार्य अंग भी हैं , मांग उठानी है तो पारदर्शिता की, समता की ,किसी पूर्वाग्रह से दूर ,बाद -रहित ,देश हित मानव हित ....../ विचारनीय आलेख .

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