व्यक्तियों का सामाजिक भूमिकाओं में स्थानन हेतु शिक्षण, प्रशिक्षण, और बोध-संचकन का भूमिका के अनुसार भिन्न उपादेयताएँ हैं। इनका विचारहीन मिश्रण औपचारिक समाजीकरण के अभिकरणों के उपक्रम को विफल कर देता है। व्यवस्था का प्रधान भाग एक का ही होना सार्थक है, और अन्य दो पूरक की स्थिति में हो सकते हैं। प्रथम परीक्षण हेतु योग्यता प्रदान करना, दूसरा कार्य-साधन के कौशल को प्रकृतिस्थ कराना, और अंतिम ध्येय के निमित्त व्यक्ति को साँचे में ढालना है।
राजनीतिक प्रणालियाँ राजनीतिक समाजीकरण के विशिष्ट क्षेत्र में अपने संविधान के अनुरूप इनमें से किसी एक का चयन करती है। सर्वजन व्यवस्था शिक्षण, विशिष्टजन व्यवस्था प्रशिक्षण, तथा सर्वाधिकारी व्यवस्था बोधसंचकन का माध्यम के रूप में उपयोग करती है।
नीरज कुमार झा
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