समझने और समझाने की बात है कि हमारा व्यक्तिगत हित और सामूहिक हित अन्योन्याश्रित है। प्रत्येक का सापेक्षिक हित देश और समाज की स्थिति पर निर्भर करता है। इसलिए प्रत्येक यह समझे कि उसका देश और समाज के हित में सोचना और कार्य करना उसके स्वयं के लिए आवश्यक है। कोई भी स्वयं कंटक बन कंटकों की संख्या बढ़ाता है, अन्य कंटकों को मजबूत करता है; और काँटों की बहुतायत सभी के जीवन को संकटपूर्ण बना देती है। जरूरत है कंटकों को दूर करने की; जो लोगों की सही समझ, सकारात्मक सोच, और रचनात्मक योगदान से ही संभव है। जनतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत रहने वाले जन निरीह नहीं हो सकते हैं। प्रत्येक नागरिक अपने आचरण और चयन में दिमाग का इस्तेमाल करे और उसके परिणामों के विषय में सोचे। लोगों की छोटी-छोटी बातों का व्यापक असर होता है। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम प्रत्येक के व्यक्तित्व के योग से ही समाज का स्वरूप और चरित्र निर्मित होता है। प्रत्येक का निरंतर प्रयास होना चाहिए कि उसका व्यक्तित्व गंभीर और आचरण गरिमामय हो। यहाँ यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई कैसा है; महत्वपूर्ण यह है कि वह अपनी प्रवृत्ति को लेकर सजग है। आदमी बहुत हद तक परिस्थितियों का दास होता है और उसके हाथ में ज्यादा कुछ नहीं होता है। लेकिन किसी भी परिस्थिति में किसी का निराश और उदासीन होना उसके द्वारा संकट को बढ़ाना है, क्योंकि ऐसी मनोदशा के व्यापक होने से परिस्थितियाँ और खराब हो जाती हैं। यथासाध्य सकारात्मक प्रयास करते रहना ही उचित है। प्रत्येक यथासंभव अपने दायित्वों का पालन करे, अधिकारों का समुचित उपयोग करे, और जनतांत्रिक साधनों का प्रयोग करे; यह उसके स्वयं, स्वजनों, और समाज के हित में है।
नीरज कुमार झा
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