जिन्हें तुम समझते मूर्ख
वे तुम्हें मानते मूढ़
तुम बांटते ज्ञान
समझते स्वयं को ज्ञानी
तुम्हें नहीं पता
नहीं कोई कृपण
तुम ऐसा समझते हो
लोग तुम्हें सुनते हैं
सच यह है कि वे मात्र स्वयं को सुनते हैं
तुम मात्र उनके भोंपू हो
तुम भी उन्हें नहीं सुनते
असल यह है
तुम भी चतुर
वे भी चतुर
दरअसल जरूरी है
सभी का आपस में बातें करना
नीरज कुमार झा
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