मैंने यहाँ स्वतंत्रता को एक अमूर्त धारणा के रूप में नहीं, वरन उन उपलब्ध प्राप्तियों और विकल्पों के लिए किया है जो हमारी भिन्न क्रिया-कलापों को संभव बनाते हैं। सामान्य जन के लिए स्वतंत्रता स्थिति भी है, और अभीष्ट भी। आज जो हमें प्राप्त हैं, वे मानवोचित वांछित की अपेक्षा न्यून ही हैं। इस संदर्भ में मैं यह रेखांकित करना चाहता हूँ कि एक-एक स्वतंत्रता के लिए विश्व की विभिन्न समाजों की पीढ़ियों ने संघर्ष किया है, और बलिदान दिया है। जो भी उपलब्ध है, वह विरासत है दुनिया के उन सभी जनहितैषी सुधीजनोंं के प्रयासों का जिन्होंने न्याय के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया। जब हम उन स्वतंत्रताओं का दुरुपयोग करते हैं, तो हम उन तमाम ज्ञात और अज्ञात महान लोगों का ही निरादर नहीं करते बल्कि स्वयं की मानवता की भी अवमानना करते हैं। वास्तव में, स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान का अभाव उन लोगों में होता है, जिन्हें स्वतंत्रताएँ उपहार में मिली है और वे अशिक्षित और संवेदनशून्य होने के उनका महत्व नहीं समझते हैं। यह तथ्य कभी विस्मरणीय नहीं होना चाहिए कि स्वतंत्रता सबसे ऊपर उत्तरदायित्व है। उदाहरण के लिए, यदि हम कुछ बोलते हैं तो हमें उसकी प्रामाणिकता, तार्किकता, तथा प्रभावों के प्रति सजग होना चाहिए। यदि हम अपने उत्तरदायित्व की अवहेलना करते हैं तो हम मात्र स्वयं की स्वतंत्रताओं को ही नष्ट नहीं करते हैं, बल्कि अपने स्वजनों का भी अपकार करते हैं।
नीरज कुमार झा
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