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रविवार, 13 अगस्त 2023

भाषाई विपन्नता का संकट

भाषाई विपन्नता सम्प्रेषण का बाधक ही नहीं, स्वतंत्रता का भी संकट है। बोध और अभिव्यक्ति की निपुणता का अभाव अधिकतर विवादों का कारण होता है। यह समस्या तथाकथित विद्वानों को लेकर भी भिन्न रूप में व्याप्त है। उनमें से अधिकतर ज्ञान के नाम पर किसी विशिष्ट विचारधारा में प्रशिक्षित होते हैं और उनका भाषाई संसार समृद्ध होने के पश्चात् भी एक विशाल व्यूह रचना ही होती है, जिसका प्रयोजन अन्य का पराजय और स्वयं का महिमामंडन होता है। इस व्यूह रचना का अंधपक्ष यह है कि इसके द्वारा निर्मित व्यवस्था पदसोपानात्मक होती है, जिसमें स्थित व्यक्तियों की परिलब्धियाँ वंचना से शुरू होकर विशेषाधिकार पर समाप्त होती है। वास्तव में भाषा की विपन्नता और इसका दोहन प्रभावरूप में समान परिघटनाएँ हैं ।

नीरज कुमार झा

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