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मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

शब्द संग्रह

किसी व्यक्ति अथवा समुदाय की सच्ची समृद्धि इस तथ्य से सिद्ध होती है कि उसका शब्द संग्रह और विशेषकर प्रयुक्त शब्दों की संख्या कितनी है। प्रयुक्त शब्दों की अल्पता जीवन की विपन्नता का हिस्सा है। यह भिन्न तथ्य है कि विपन्न जन या समुदाय भी प्रयास के द्वारा कृत्रिम रूप से शब्द संग्रह का विस्तार कर लेते हैं।

शब्दभंडार का स्वाभाविक विस्तार व्यवसाय, उद्योग, विज्ञान और संस्कृति में व्यक्ति तथा समुदाय के सुधारवादी दृष्टिकोण से युक्त क्रियाशीलता से होता है। मानव पकृति से ही विकासवादी जीव है और विकास का एक कारक, और प्रभाव भी, उसका शब्दों का संग्रह है। यह विकास की प्रक्रिया का उपकरण, विकास को धारण करने का साधन और श्रेष्ठ जीवन का सरोवर है।

शब्द संचय पृथक प्रयास नहीं होना चाहिए। यह पिछड़ेपन की स्थिति में होता है। शब्द संग्रह का विस्तार प्रयोग के क्रम का स्वाभाविक परिणाम है।

समुदाय पिछड़ा इसलिए होता है कि उसे लक्ष्य और हेतु का अंतर पता नहीं होता है। वे उत्पादन के घटकों और उत्पाद की पहचान को लेकर भी भ्रम में रहते हैं। 

उद्यमशीलता संस्कार और समृद्धि का आधार है।

नीरज कुमार झा

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