जहाँ तक शिक्षण का प्रश्न है, सामाजिक मीडिया आबालवृद्ध के मानस को गढ़ रहा है। यह ज्ञानियों और ज्ञानमीमांसकों के लिए अद्भुत अवसर है। पहली बार उन्हें इतने व्यापक रूप से सामान्य जन उनके सम्मुख श्रोता सह पाठक के रूप उपास्थित हैं और जिनसे वे संवाद भी कर सकते हैं। यह सच्चे विद्वानों के लिए गोलबंद प्रवंचकों से भी पार पाने का अवसर देता है।
प्रायोजित गोष्ठियों और बंधे पत्र-पत्रिकाओं एवं स्टूडियो से स्वतंत्र एवं इच्छानुकूल सम्प्रेषण के लिए सुविधा अत्यंत सीमित थी। सामाजिक मीडिया यह सुविधा सभी को निरंतर और स्थायी रूप से देता है। कुशल जनहितैषी विद्वान इस मंच पर विमर्श कर मानवता की भलाई के लिए अपना योगदान प्रभावी रूप से दे सकते हैं।
नीरज कुमार झा
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