यह तथ्य है कि सभी विशिष्ट हैं लेकिन यह भी तथ्य है कि यह विशिष्टता नहीं है।
लोग विशिष्ट होने के उपरांत भी अपनी विशिष्टता के प्रदर्शन के लिए प्रयासरत रहते हैं और उस विशिष्टता के लिए मान्यता चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, जयकारा की कामना रखते हैं।
वास्तव में यह दोषपूर्ण ज्ञानमीमांसा के द्वारा आरोपित अपूर्णता का बोध है। ऐसे अपूर्ण लोग अपनी अपूर्णता के अनुपात में दूसरों के लिए संकट बनते हैं।
नीरज कुमार झा
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