यह भी सत्य है कि परमार्थ स्वार्थ से अभिन्न है। सर्वहित में ही स्वहित की सर्वोत्तम उपलब्धि सम्भव है।
व्यावहारिकता मध्यममार्ग है। सबके भले के साथ अपनी भलाई का उपक्रम उचित है। इसकी सीमा है किसी को हानि पहुँचाए लाभ हेतु प्रयास। इससे निम्न कर्म समाज के विरूद्ध है और किसी के हित में नहीं है।
नीरज कुमार झा
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