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बुधवार, 20 नवंबर 2024

वस्तुनिष्ठता की चुनौती

किसी भी घटित हो रही लोक परिघटना का भी अध्ययन करने से पता चलता है कि उसके होने की परते हैं और और प्रत्येक परत के एकाधिक आयाम हैं। यदि अध्येता विचारधारा चालित नहीं है अथवा उसके पास पूर्व निर्धारित निष्कर्ष नहीं है तो परिघटना को लेकर कोई निर्णयात्मक घोषणा करना लगभग असंभव है। यह तब है जब अध्येता किसी घटना का प्रत्यक्षदर्शी होता है। ऐतिहासिक परिघटनाओं को लेकर अध्ययन की वस्तुनिष्ठता की चुनौती की कल्पना की जा सकती है।
 
इस फांस का काट सामाजिक समस्याओं और चुनौतियों का संवेदनात्मक चिह्नांकन और उसके निराकरण की मानवीय योजना है। इतिहास विषय को इस संदर्भ में दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम, प्रकार्यात्मक इतिहास और द्वितीय, कौतुक इतिहास। पहला इतिहास वह है जो समकालीन समाज के लिए उपयोगी है और दूसरा जो मात्र कौतूहल शांति के लिए उपयोगी है। पहला इतिहास वर्तमान से विगत की ओर जाएगा और दूसरा अपने समय में ही देखा जाएगा।
 
नीरज कुमार झा

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