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शनिवार, 8 मई 2010

तुम जीतो

तुम जीतो
मैं तुम्हारे साथ हूँ
जीत कर नहीं होगी
तुम उन जैसी
यह मुझे पता है

लेकिन जीत से
यदि सिर्फ़ जगहें बदलती हैं
तो फ़िर क्या फ़ायदा
हरा भी दिया तुमने उसे
बना लिया अपना दास
जितना चाहा जैसे चाहा लूटा
या   कर खड़ा बाजार में बेच दिया
तो फ़िर क्या बदला तुमने
बात नहीं जय की
या पराजय की
क्या नहीं बना सकती तुम दुनियाँ ऐसी
जिसमें नहीं हो हार या जीत
या हो सबकी ही जीत

तुम जीतो
मैं भी सेनानी तुम्हारा
लेकिन क्यों न हो तुम्हारी ऐसी जीत
जो बदल दे जय-पराजय की ही रीत

तुम जीतोगी
मैं जानता हूँ
चाहो तो तुम पा सकती हो
जीत पर भी जीत
सिर्फ़ तुम ही पा सकती हो
जीत जीत पर
जीत हार पर

तुम जीतोगी तो ऐसा ही होगा
तुम जीतोगी ही
जीतेंगे वो भी जो हारेंगे
तुम जीतोगी जीत को
वो हारेंगे हार को

तुम जीतो
मैं गर्वित हूँ
हो सेनानी उस अभियान का
जिसमें जीती जाएगी जीत
और हारी जाएगी हार
- नीरज कुमार झा 

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