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रविवार, 29 अगस्त 2010

ताबूत में पड़े मुर्दे की तरह

अकारण ही मुझे मिला है बहुत सारा
मेरी प्रतिभा और प्रयासों से  कहीं बहुत ज़्यादा
 अपने-आप जो आया 
डरता हूँ कहीं चला न  जाए ऐसे ही 
आँखें रखता हूँ  नीची
चलता हूँ धीमा
बोलता बिलकुल कम
साँस भी लेता धीरे-धीरे
कहीं कुछ ऐसा ना हो  जाए
कि खो जाए सब कुछ अकारण
जीता हूँ लेकिन
ताबूत में पड़े मुर्दे की तरह

- नीरज कुमार झा

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