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रविवार, 5 दिसंबर 2010

भारती का भविष्य (भाग ९)

उन्नति के आधार

हिन्दी निश्चित रूप से पराभव की स्थिति में है लेकिन इसके उदय के प्रबल आधार उपस्थित हैं। आवश्यकता इच्छा शक्ति को जाग्रत करने तथा सक्रिय होने की है। हिन्दी चीनी भाषा के बाद दुनियाँ की दूसरी सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली देशज भाषा है। देशज भाषा के रूप में अँगरेजी  तीसरे स्थान पर है तथा स्पेनी भाषियों की संख्या उनसे ज्यादा पीछे नहीं है। विदेशों में फैले दो करोड़ से ऊपर अप्रवासी भारतीय तथा भारतीय मूल के लोग इस भाषा के विस्तार के सक्षम संवाहक हो सकते हैं। हिन्दी चलचित्र उद्योग विश्व में हालीवुड के बाद दूसरा स्थान रखता है। आज भी देश में अंग्रेजी अखबारों से बहुत ज्यादा पाठक संख्या हिन्दी अखबारों की है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी हिन्दी चैनल ही सबसे ज्यादा देखे जाते हैं। ये प्रमाण हिन्दी के सबल आधार की ओर इंगित करते हैं। यह आधार वास्तव में पिछड़े  क्षेत्र के विपन्न जन हैं। उनके सम्मान तथा समृद्धि के लिये भी आवश्यक है कि हिन्दी का विकास हो। हिन्दी में अभी काफी संभावनाएँ मौजूद  हैं लेकिन यह भाषा आज इस स्थिति में नहीं है कि यह अपने बल पर विश्व भाषा बन सके। इसके लिये विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिये विशेष निवेश की आवश्यकता है। ऐसा भी नहीं है कि  वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के लिये हिन्दी पर जोर अवरोधक हो। दुनियॉ के अनेक देशों ने स्वदेशी भाषा के माध्यम से ही ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में स्वतंत्र प्रगति की है तथा इन क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियॉ आंग्ल भाषी देशों से किसी भी तरह से कमतर नहीं है। जर्मनी, जापान तथा रूस सहित अनेक यूरोपीय देश इसके उदाहरण हैं।
- नीरज कुमार झा
(मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित पत्रिका रचना के मई- अगस्त २००६ अंक में प्रकाशित मेरे आलेख का अंश

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