पुरानी समझ है कि ज्ञान शक्ति है। आज के दौर का सबसे बड़ा सच यह है कि ज्ञान की शक्ति अत्यधिक बढ़ चुकी है और बढ़ रही है। पहले अधिकतर तकनीकें और उपकरण मांसपेशियों के बल को बढ़ाते थे अथवा उसका अधिक शक्तिशाली विकल्प देते थे । अब नई तकनीकें बौद्धिक क्षमता को बढ़ाते हैं और उत्तरोत्तर उसका शक्तिशाली विकल्प दे रहे हैं। अंततोगत्वा कोई भी प्रौद्योगिकी और उपकरण आमतौर पर आमजन को सशक्त बनाते हैं लेकिन इसके इस स्थिति तक इसे पहुँचने में एक अंतराल होता है। लोकहित के दृष्टिकोण से यह अवधि विपत्ति का कारण हो सकता है और सजगता की मांग करता है। इस संदर्भ में कृत्रिम बुद्धि को लेकर आम जागरूकता और सजगता की आवश्यकता आज का सर्वाधिक संवेदनशील मुद्दा है।
इस उद्देश्य से भारत में विश्वविद्यालयों की भूमिका को गंभीरता और प्रासंगिकता से युक्त करना होगा। आज की चुनौतियों का समाना करने के लिए ज्ञान संसाधन की आवश्यकता आधारभूत है। इसके उत्पादन हेतु विश्वविद्यालय सहज कार्यशाला हो सकते हैं। विशुद्ध शोधसंस्थानों अथवा प्रयोगशालाओं की तुलना में विश्वविद्यालय की विशिष्टता इसका समाज से सृजनात्मक जुड़ाव है।
इस परिदृश्य में नवीन शिक्षा नीति विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर जोर देती है लेकिन लोकहित रक्षण और राष्ट्रशक्ति के विस्तार हेतु इस व्यवस्था में सतत परिमार्जन की आवश्यकता होगी। आज कृत्रिम प्रौद्योगिकी और पर्यवावरण क्षरण की चुनौतियों के बीच विश्वविद्यालयों की भूमिका रणनीतिक है और इसकी प्रभावी भूमिका का विकल्प नहीं है।
नीरज कुमार झा
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