एक दृष्टि से अभिव्यक्ति के अधिकार की उपलब्धता अभिव्यक्ति की सर्वजनीन क्रियाशीलता का गौण पहलू है। अभिव्यक्ति विद्याओं की साधना है, और उनका साधन भी। स्मरणीय है कि अभिव्यक्ति यह पशुत्व की दीनता से मनुष्यता के सुख की ओर परिष्कार का हेतु है। मानवजीव होने का दायित्व है अभिव्यक्ति को सार्थक और सशक्त बनाने हेतु प्रयासरत रहना। यदि सर्वजन में ज्ञान और सम्प्रेषण की निपुणता से युक्त अभिव्यक्तियों की व्यापकता होगी तो वहाँ अभिव्यक्ति ही नहीं, अन्य अधिकारों की स्थिति भी प्रायः स्वपरवर्तनीय होगी। अभिव्यक्ति का अधिकार, संभावित अन्य के अतिरिक्त, मुख्यतया अभिव्यक्ति में अंतर्निहित तथ्यपरकता, तार्किकता और सत्यनिष्ठा एवं इसके निष्पादन की कला पर निर्भर करती है।
नीरज कुमार झा
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