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मंगलवार, 11 जून 2024

समझ की समझ

संतुलन के सरोकार और समांतर की खोज समझ को अक्सर दिग्भ्रमित कर देती हैं। तुलनात्मक उपागम अत्यंत सावधानी की मांग करता है, अन्यथा सामान्य और विकृत समान रूप से प्रतिष्ठापित हो जाते हैं।

नीरज कुमार झा

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