पृष्ठ

शनिवार, 1 जून 2024

जीवन का सार

मानव सृजन करता है कल्पनाओं का अलग संसार
बना लेता है निकाल उसका सार जीवन का आधार
व्याकुल मध्य अस्तित्व के अबूझ अपरिमित विस्तार
समझता नहीं कि उसकी सीमा ही है जीवन का सार

नीरज कुमार झा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें