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गुरुवार, 27 जून 2024

अनकहा जीवन

कहना है कुछ
कह जाता कुछ और
अपने लिए भाषा ही नहीं बनी
​भाषा उतनी ही है
जिससे चलती विचारधाराएँ 
जीवनियाँ तो लिख जाती हैं
जीवन अनकहा रह जाता है

नीरज कुमार झा

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