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रविवार, 9 जून 2024

वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हमारी हिस्सेदारी

भारत का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सा 3.37 प्रतिशत है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि अधिकतर भारतीयों के जीवन काल में यह कम से कम 20 प्रतिशत हो जाए। यह विकसित देशों के तुल्य संतोषजनक  मानक जीवन शैली प्राप्त करने के लिए तो आवश्यक है ही (विकसित देशों की वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी उनकी वैश्विक आबादी के प्रतिशत से चार से पाँच गुणा ज्यादा है), राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी अपरिहार्य है (चीन का 17.86 प्रतिशत है)। देश की सामरिक शक्ति अंततः आर्थिक शक्ति पर ही निर्भर करती है।

कोई पूछ सकता है कि अन्य सरोकारों का क्या होगा? उत्तर यह है कि अन्य समस्याओं को दूर कर ही हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षाव्यवस्था, चिकित्सासेवा, कानून व्यवस्था, तथा जेन्डरन्याय आदि के बिना यह संभव ही नहीं है।

यदि किसी कार्यक्रम या योजना से जीडीपी वृद्धि दर अप्रभावित रहती है अथवा नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है, तो वह कार्यक्रम के लक्षित समस्या का निदान नहीं होगा बल्कि समस्या को लेकर भ्रम फैलाना होगा।

जो कवि-साहित्यकार, दार्शनिक आदि उदारीकरण का विरोध करते हैं, उन्हें भी अच्छी आमदानी होगी। अभी तक के आर्थिक सुधारों का फायदा उन्होंने देखा है। उनमें से कुछेक तो चार्टर्ड हवाईजहाजों से सफर करते हैं।

नीरज कुमार झा

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