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शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

विचारशीलता

विचारशीलता ही विचारधाराओं से रक्षा कर सकती है। संकट लोगों की विचारशीलता को नष्ट कर देता है और वे विचारधारा में अपना उद्धार देखने लगते हैं। विचारधारात्मक उद्धार नियोजन उन्हें इस स्तर तक मानसिक पंगु बना देता है कि उनके लिए संपत्ति और विपत्ति का भेद ही समाप्त हो जाता है। विचारधाराग्रस्त क्षेत्रों में सभ्यता और मानवता जीवंतता खो देती है और दुनिया के दूसरे हिस्सों में जीवन को भी संकट में डालने लगती है।

विगत के घोर संकटकालों में प्राचीन भारत की विचारशीलता की परंपरा ने ही भारत की रक्षा की। यह अवश्य हुआ कि आयातित और आरोपित विचारधाराओं का दुष्प्रभाव भारत पर पड़ा और आज भी है, लेकिन यह हमारी पीढ़ी के लिए सौभाग्य का विषय है, और मानवता के लिए भी, कि भारत संकट के अतीत को पीछे छोड़ चुका है और उसकी मेधा अनधीन हो चुकी है। अब तय है कि वह प्राचीन मेधा पुनर्नवा होकर मानवता का मार्ग प्रशस्त करेगी।

नीरज कुमार झा

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