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रविवार, 7 जनवरी 2024

प्रभु

निश्छल मन
हृदय में उमंग
आँखों में आँसू
कंपित हाथों से
जब करता मानव स्पर्श
प्राणमय हो जाता जड़
जो कण-कण में सम्पूर्ण
क्षण-क्षण में शाश्वत
जीव-अजीव में अभेद
सृष्टि-शून्य में विद्यमान
अनादि-अनंत में स्थित
हो जाता स्पंदित उसमें
हो वह धातु या पाषाण
 
नीरज कुमार झा

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