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मंगलवार, 9 जनवरी 2024

अनुभव और सिद्धांत के बीच का इंद्रजाल

अपने अनुभवों को सिद्धांतों के रूप में रखकर समझना और परखना हमारे लिए गंभीर चुनौती है। इसके लिए हमें विदेशी अवधारणाओं, उपागमों और सिद्धांतों का उपयोग करना पड़ता है। पहले तो इन उपकरणों को समझना ही टेढ़ी खीर है और कइयों की विशेज्ञता की क्षमता यही आकर समाप्त हो जाती है (इस क्षेत्र में अनूदित ज्ञान का परिणाम और भी भयावह है)। इसके बाद शुरू होता है ऐसे विद्वानों द्वारा उन आयातित शब्दावली और प्रणाली के अनुरूप अपनी परिस्थितियों को फिट करने का दुराग्रह। यह समाज में व्याप्त अनेक विसंगतियों का कारण है। इससे आगे की समस्या है विदेशी विद्वानों द्वारा भारत की परिस्थितियों का सिद्धांतीकरण। उनके सिद्धांत स्वाभाविक रूप से उनकी सांस्कृतिक चेतना पर आधारित होते हैं जो स्थूलता को अधिक दृष्टिगत करती है। दूसरा, समझने की मशीनी दृष्टि कई अप्रकट सांस्कृतिक ताने-बाने को उपेक्षित कर देती है। विदेशियों के ये सिद्धांत हमारे लिए मार्गदर्शक हो जाते हैं और हमारी समझ और सच्चाई में दूराव पैदा कर हमारे जीवन को कठिन बना देते हैं। शिक्षण संस्थानों में किए जाने वाले कार्यों को लेकर गंभीरता की गंभीर आवश्यकता है।

नीरज कुमार झा

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