कहीं तुम्हारा अभिव्यक्ति का कौशल
जीवन पर हावी तो नहीं हो रहा है
कहीं अहं को तुमने तो नहीं बना रखा है दसवाँ रस
और सभी रसों में उसे ही घोल रहे हो
कवि, तुम याद रखना
मूक जीवन मुखर होने
तुम्हारी तरफ देख रहा है
जो द्रव बन सींच रहे जीवन को
उन्हें स्वर तुम्हें उसी विनम्रता से देना है
तुम साथ रहो, साझेदार बनो
मानवता पुकार रही है
तुम एक हो, लेकिन अनेक से अलग नहीं
तुम्हें ही यह समझना है, तुम्हें ऐसे ही रहना है
नीरज कुमार झा
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