सभ्य जीवन का किया था सूत्रपात उसने
जिसने किया था सूर्य की किरणों से प्रथम विनय
कि करें बुद्धि प्रकाशमय
सभ्यता को स्वरूप दे गया था वह व्यक्ति
पंथप्रवर्तकों के आने से सदियों पहले
कहा था जिसने दीपक बने अपना व्यष्टि
कल्पित का वास्तव के दमन के क्रूरतम चरम पर
एक संत कर गया था परम का मानवीयकरण
गाया था गीत उसने मानव और जगत की गरिमा का
उस दौर में भी जब तथाकथित सभ्यताओं ने
जातीय लोलुपता और दंभ के विज्ञान से
प्रलयों में झोंक दिया था जन-जन को
कृशकाय एक लगा एकअभियान महान में
जिसमें सम्मिलित सभी नर-नारी ने
आग्रह था किया प्राणपण
कि नहीं है सत्य और अहिंसा भिन्न
सत्य की सभ्यता के संघर्ष की इस परंपरा का निर्वाह
है यही भारत का प्रण
नीरज कुमार झा
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