पुरी या नागर होना योग्यता है, जो अर्जित की जाती है। इस प्रयास में अध्ययन अहम व्यायाम है। यदि आपकी प्रवृत्ति अध्येता की नहीं है और बर्बरता आपका साध्य नहीं है तो एक पुस्तक का अवलोकन मस्तिष्क के नेत्रों से करने से, मौखिक उच्चारण के सिवा अथवा साथ, आपका मनोरथ सिद्ध हो सकता है। वह पुस्तक रामचरितमानस है। इसका अनुशीलन आपको मानव बनाता है और स्वाभाविक रूप से पुरवासी भी। पुरी होना उत्पन्न होने और निवास की भौगोलिक स्थिति नहीं है।
नीरज कुमार झा
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