पृष्ठ

गुरुवार, 23 मार्च 2023

ज्ञान सृजन

ज्ञान सृजन प्रधानतया संस्थामूलक तथा प्रणालीगत प्रक्रिया है। यहाँ ज्ञान सृजन से अभिप्राय लोकहितैषी सूत्रों की खोज, परख, उन्नयन, एवं क्रियान्वयन से है। लोकरक्षा और हितसाधन हेतु प्रभावी ज्ञान अनायास, संयोग, अथवा मात्र चिंतन से प्राप्त करना संभव नहीं है। यह संसाधनों से युक्त संस्थाओं में स्थित कल्पनाशील, मेधावी, कर्मठ, तथा निष्ठ व्यक्तियों के नेतृत्व में सतत क्रियाशील प्रक्रिया से ही प्राप्त हो सकता है। सूत्रों को निकालना, जोड़ना, उन्हें आगे बढ़ाना और उपयोगयोग्य बनाना संकेंद्रित और दीर्घकालीक उपक्रम है। 

अभी हम आयातित पुर्जों का मात्र समधान (assemling of outsourced components) अथवा बाहर से खरीदे मशीनों का उपयोग कर रहे है। यह काम तो करता है लेकिन वाह्य उपकरण होने के नाते पूरी तरह से हमारे अनुकूल नहीं होता है और हम उनसे पीछे रह जाते हैं जिनपर हम निर्भर होते हैं।  यहाँ मैं ज्ञान सृजन की ही बात कर रहा हूँ । 

संस्थानों को लोगों की परिस्थितियों,आशा-आकांकक्षाओं तथा तकलीफों-परेशानियों को समझ कर ज्ञान को नए सिरे से गढ़ना होगा। यह ध्येयानुसार सुगठित संस्थानों द्वारा संभाव होगा।  यह जन, जनपद और राष्ट्र को अग्रणी बनाने के लिए आवश्यक है। 

नीरज कुमार झा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें