नहीं अलग कर पाता
न ही जोड़ पाता
अहमियत और आदमियत को
एक आदमी
न ही जोड़ पाता
अहमियत और आदमियत को
एक आदमी
ये एक हैं
हैं अलग भी
दोस्त हैं और दुश्मन भी
एक दूसरे को मिटाने में लगे
मिटने पर दूसरे के
खुद भी सिमटने लगते हैं
नहीं होना
होने को नकारता है
होना नहीं होने को
अनुचित हैं दोनों ही
एक दूसरे पर सवाल उठाते दोनों
होना नहीं होने को
अनुचित हैं दोनों ही
एक दूसरे पर सवाल उठाते दोनों
इनके बीच की उलझन
नियति है जीवन की
इसको स्वीकार कर
तलाश लेता है बीच का रास्ता
एक भला आदमी
नीरज कुमार झा
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