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बुधवार, 18 सितंबर 2024

काश!

काश, सिद्धांतकार होता
सारी दुनिया को विचारों की पोटली में समेट कर
हवाओं पर सवार रहता
नहीं तो, कवि ही होता
रच शब्दों का चमत्कारी विन्यास
मुक्त स्वयं को कर लेता
कोई नहीं, लेकिन ऊपरवाला
ऊपर तो खाली रखता
दिल भरा, भारी तो नहीं रहता

नीरज कुमार झा 

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