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शनिवार, 28 सितंबर 2024

साहित्य और संपत्ति

साहित्य का ध्येय संपत्ति हो, विपत्ति नहीं। निर्धनता सांस्कृतिक उन्नयन के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोध है। जैसे संपत्ति और संस्कृति अभिन्न हैं, वैसे ही विपत्ति और विकृति (कुरीतियाँ)।

सामान्यतः, साहित्य की सहानुभूति निर्धनों के साथ होती है। रचनाधर्मिता में संवेदना की भावना होने की संभावना अच्छी रहती है। समस्या यह है कि अनेक रचनाकार निर्धनों के प्रति सहानुभूति और निर्धनता के प्रति सहानुभूति में अंतर नहीं कर पाते।।

रूग्णता का गीत नहीं गाया जाता।

संपत्ति से साहित्य भी सम्पन्न होगा। सम्पन्न व्यक्ति ही साहित्य पढ़ अथवा इसके प्रस्तुतीकरणों को देख सकता है। अधिकतर लोगों के द्वारा साहित्य पढ़ा जाए और खरीदा जाए तभी साहित्य की उपादेयता है और साहित्यकारों की प्रसंगिता भी। यह साहित्यकारों की प्रतिष्ठा भी बढ़ाएगी और बड़ी संख्या में रचनाकारों के लिए पर्याप्त आय वाली आजीविका भी बन सकेगी।

​यह कैसी स्थिति है कि जिनपर लिखा जाता है वह पाठक नहीं है? जिस क्रांति की कोई संभावना नहीं है, उसका गीत गाया जाता है।

यह चलन जीवन और सृजन दोनों की वंचना का कारण है।

बड़ी समस्या यह है कि निदान नीरस होता है और समस्या सम्मोहक।

नीरज कुमार झा

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