पृष्ठ

रविवार, 22 सितंबर 2024

बुद्धि

प्रखर बुद्धि हेतु प्रार्थना और निरंतर प्रयास धर्म है। बुद्धि भिन्नता में एकत्व की अनुभूति का हेतु है और इसकी प्रवृत्ति परमार्थ है। धर्म ऐहिक और आध्यात्मिक दोनों ही सरोकारों का संतुलित समन्वय का दृष्टिकोण और जीवन शैली है। इस संदर्भ में यह तथ्य अत्यंत प्रासंगिक है कि बुद्धि की प्रकृति का यह भी अपरिहार्य आयाम है कि यह कुबुद्धि के व्यूहों और बुद्धिहीनता के तांडव का शमन कर सकती है। दुर्जनों के सुधार हेतु प्रयासों के साथ ऐसी संभावनाओं और घटनाओं के प्रतिकार को लेकर युक्ति और तंत्र का विकास संतुलित बुद्धि का परिचायक है। कंटक निवारण की निरापद युक्ति राजनीति का अहम दायित्व है।
 
नीरज कुमार झा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें